बेकार है ये सरकार, गिरा दो
बस एक नहीं दो-चार गिरा दो
इस भ्रष्ट-भूमि के हवनकुंड में
भ्रष्टों के खूं की धार गिरा दो
जनता को कौन जानता है?
सत्ता को बाप मानता है
इस कटी ज़बान के कांटे के
सर पे बस एक तलवार गिरा दो
हम जनता क्या, जनार्दन भी हैं
करते मान का मर्दन भी हैं
अपनी तो किसी को खबर नहीं
हर नेता का आचार गिरा दो
नेता मुंह में लेता है नोट
पर अपने से न डलता वोट
अब समय और वोट बचा के बस
उसके पुतले पे tar गिरा दो
इस देश का जाने क्या होगा,
परदेश क्या फिर से खुदा होगा?
इस सबकी चिंता कौन करे,
चलो सड़क से इश्तेहार गिरा दो
अब पुरुष बनेंगे महापुरुष
वही जनता को रखेंगे खुश
अनशन के खर्चे-पानी का
बस बटुए से सौ-हज़ार गिरा दो
अनशन तो एक बहाना है
अनबन को पूरा निभाना है
योगी-भोगी के बीच खड़ी
अंतिम ये भी दीवार गिरा दो
सत्ता तो सब की प्रेयसी है
इसीलिए तो democracy है
जवाबों के अभावों में
सवालों की बौछार गिरा दो
बेकार है ये सरकार, गिरा दो
बस एक नहीं दो-चार गिरा दो
1 comment:
hum tayyar hain....sarkar gira do!!!
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