दस्सा है परेशां
टपका है आसमां
अब शायरी का कीड़ा भी गांड में पल रहा है
और बताओ क्या चल रहा है?
बारातियों की फ़ौज
मस्ती, मज़ा, और मौज
नाचें यूं hodge-podge मानो बदन जल रहा है
और बताओ...
मौसम का सुनिए हाल
धड़कन की सुनिए ताल
धरती की मस्त चाल पे बादल फिसल रहा है
और बताओ...
क्या हुआ रे सिबल?
माथे पे क्यूँ हैं बल?
क्या चाटने में दिग्गीमल आगे निकल रहा है?
और बताओ...
ख़ामोशी के अल्फ़ाज़
अनसुनी एक आवाज़
हर छिपे हुए राज़ में एक सच उबल रहा है
और बताओ...
ना शमा की शरम
ना पतंगे का श्रम
बचता है बस वो मोम जो हर पल पिघल रहा है
और बताओ...
थे बेफ़िक्र बेपरवाह
क्या असर, कैसी आह
ग़ालिब पढ़ा, हर चाह पे अब दम निकल रहा है
और बताओ....
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