क्या कहूँ कहाँ से शुरू करूँ
इतनी सी कहनी थी बस बात
एक नीम की टहनी हाथ में ले
तू रातों जगती थी
जब chickenpox की तीखी खुजली
मुझको लगती थी
हंस के कहता होगा तेरी
किस्मत लिखनेवाला
"इसको तो बच्चों के आगे
कुछ ना दिखनेवाला"
मैं खुद ही तुझसे हुआ शुरू
इतनी सी कहनी थी बस बात
सर पे रखे रहना तू हाथ
कुछ ठीक-ठीक अब याद नहीं
पर जब मैं रोता था
मेरी हर आह का असर कहीं
तुझपे भी होता था
एक नीम की टहनी हाथ में ले
तू रातों जगती थी
जब chickenpox की तीखी खुजली
मुझको लगती थी
क्या पता कि कैसे मैंने ये
पढ़ना-लिखना सीखा
जब टीचर ने पीटा मुझको
तेरा दिल क्यूँ चीखा?
मैं भूत से कितना डरता था
क्या है कुछ याद तुझे?
उस महावीर से ज्यादा तेरा
था आसरा मुझे
अब सोच-सोच के हँसता हूँ
क्या वो भी मैं ही था?
जिसकी दुनिया में जो भी था
वो बस तुझसे ही था
कभी बिना बात बैठे-बैठे
दिया प्यार भरा बोसा
कभी चांटा जड़ अपने ही हाथ को
जी भर के कोसा
"कुछ पढ़ो, जहां में नाम करो"
तू ही तो कहती थी
फिर दूर मुझे खुद से करके
क्यूँ रोती रहती थी?
हंस के कहता होगा तेरी
किस्मत लिखनेवाला
"इसको तो बच्चों के आगे
कुछ ना दिखनेवाला"
इस खेले में कभी जीत मिली
और कभी मिली मुझे हार
पर जीत-हार से परे है माँ
तू और तेरा ये प्यार
मैं चार लफ्ज़ से क्या तेरा
ये क़र्ज़ चुकाऊंगा
गर कोशिश की तो लिखते-लिखते
ही मर जाऊंगा
बस बहुत लगा लिया मस्का
बिन बात के ही तुझको
चल हलवा खीर समोसे का
अब भोग लगा मुझको
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