कोई कहता था उसे शूरवीर
कोई कहता लम्पट
आधी दुनिया को रौंद के वो
पहुंचा सिन्धु के तट
रणभूमि था मंदिर उसका
वो जंग का था फ़रियादी
रण में ही मनन किया उसने
रण में ही ढूंढी समाधि
राजा नहीं, वो था सेनानी
गद्दी से कोसों दूर
ना सुख की, ना सत्ता की भूख
सन्यासी, किन्तु क्रूर
सिन्धु के तट पर तब उसने
देखा एक अजब अजूबा
तन पानी में, और मन तो खुद
मन के दरिया में डूबा
पूछा राजा, "हे सिन्धुवासी
क्या है तेरा नाम?
यूं भरी दुपहरी स्नान करे
क्या नहीं तुझे कोई काम?"
वो मुस्काया, बोला "राजन
मैं हूँ बिलकुल बेकार
तू आया पार कर सौ दरिये
मैं गया ना सिन्धु पार"
हैरान हो गया वीर पुरुष
"कैसे तू पाया जान?
कि दूर देस से मैं आया
जिसे कहते हैं यूनान"
पागल-सा हंसा अचानक वो
"नहीं ये कोई चमत्कार
थक गया है तू चलते-चलते
अब लगता है बीमार"
"बकवास!" कह गरज उठा योद्धा
"मैं थकता नहीं कभी
तेरी धरती को जीत
बना लूँगा तुझे दास अभी"
"मैं हूँ इस धरती का लेकिन
मेरी कोई धरती नहीं
जो जीतना है तू जीत के आ
मैं मिलूँगा तुझे यहीं"
योद्धा बोला, "पहले ये बूझ
कैसे है तू बेकार?
अपने जीवन से तुझे नहीं
क्या तनिक भी सरोकार?
ये यौवन तो है क्षणभंगुर
पल में कट जावेगा
गर कुछ ना किया तो मरते दम
तू बहुत पछ्तावेगा
मेरे भी देश में हैं ज्ञानी
बतलाते मृत्यु-रहस्य
कहते कि स्वर्ग पहुँचने को
दो सिक्के लगते बस
मैं तो अब इतना जीत चुका
कि स्वर्ग भी लूँगा खरीद
और तेरे हाथ बस आएगी
मेरे घोड़े की लीद"
ये सुन के और हंसा साधू
"बातें तेरी बालक-सी
ना सृष्टि की है समझ तुझे
ना सृष्टि के चालक की
तू मौत भी सिक्कों में तोले
स्वर्ग जाएगा रिश्वत दे के
अरे मौत प्रेयसी है वेश्या नहीं
जो जेब के भार को देखे
पीर मरे, पैगम्बर मरे हैं
मर गए जिन्दा जोगी
राजा मरे, प्रजा मरी है
मर गए वैद और रोगी
पर मौत भी कोई अंत नहीं
सब लौट के फिर आयेंगे
इस जन्म में जो भी कर्म किये
उनका ऋण चुकायेंगे
जब लौट के यहीं पे आना है
तो फिर जल्दी काहे की?
तुझ से तो कहीं बेहतर है
ज़िन्दगी एक जुलाहे की
तू सिन्धु पार तो कर लेगा
पर दूर ना जा पायेगा
तेरा काल तुझे जल्दी ही
वापस खींच लाएगा
तूने युद्ध में जितने भी मारे
सब वीरगति को पाए
तेरी मौत होगी इतनी मामूली
कि बताने में शर्म आये"
इससे ज़्यादा सुन सका नहीं
आगबबूला हो गया वीर
झटके में शीश ने छोड़ दिया
साधू का तड़पता शरीर
सिन्धु तो पार कर गया वो
पर सेना हो गयी पस्त
और मगध का वर्णन सुनते ही
लग गए सभी को दस्त
फिर झेलम से ही लौट चला
शूरवीरों का वो दस्ता
और मरा वहीँ जाकर राजा
जिस जगह से था वाबस्ता
पर दोनों लौट के फिर आये
किस्मत का अजब है झोल
राजा अब के बन गया फ़कीर
साधू बन गया मंगोल
कौन है राजा? कौन फ़कीर?
कभी सिकंदर, कभी कबीर
कौन प्रसिद्ध है? कौन अनजान?
कभी साधू, कभी चंगेज़ खान
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