अगर तुम हिन्दू होतीं
रोज़ नए रूप में रूबरू होतीं
हर दिन मेरी किसी नयी बात पर निसार होतीं
मेरे बारे में रोज़ नयी कहानियां गढ़तीं
और रोज़ मेरी पुरानी कहानियों से लड़तीं
मुझसे जी भर के मिलतीं
पर मुझको रत्ती भर भी ना मिलतीं
कहीं ना होकर भी हर सू होतीं
अगर तुम हिन्दू होतीं
अगर तुम मुसलमाँ होतीं
कभी पूरा ना होने वाला अरमां होतीं
हर रोज़ पहली सी मोहब्बत करतीं
खुद से ज़्यादा मुझपे यकीन करतीं
मेरी गलतियों को छुपा लेतीं
मेरे एक वादे पर ज़िन्दगी बिता लेतीं
मेरी किसी बात को ना टाल पातीं
मुझको मुसीबत में संभाल पातीं
मेरी हर परेशानी से परेशां होतीं
अगर तुम मुसलमाँ होतीं
अगर तुम क्रिस्चियन होतीं
कभी बुढ़ापा कभी बांकपन होतीं
हफ्ते भर की दुनियादारी के बाद
मुझे sunday के सुकूं की तरह मिलतीं
जब मिलतीं तो गुनहगार सी
जब बिछड़तीं तो तलबगार सी
बेज़ुबां बच्चे की ज़ुबान जैसी
बेमतलब बेपरवाह बे-सुख़न होतीं
अगर तुम क्रिस्चियन होतीं
अगर तुम बौद्ध होतीं
गीली मिट्टी सी तुम्हारी सौंध होती
अपने जज़्बातों से ही घबराई सी
छुपा लेतीं खुद को मुझे भुलाने के लिए
घूमतीं गली गली सबको समझाने के लिए
कि मोहब्बत में दर्द मिलता है
सुकूं बस फ़र्द-फ़र्द मिलता है
मैं अँधेरे में तुम्हारी आहटें तलाशता और
पूरी दुनिया तुमसे चकाचौंध होती
अगर तुम बौद्ध होती
अगर तुम सिख होतीं
लटके हुए चेहरों पर कालिख होतीं
कहानियों से खींचकर मुझको तुम
हक़ीक़त में धम से ला पटक देतीं
मेरी मोहब्बत सीधे बोतल से गटक लेतीं
हर पल में और वक़्त भर जातीं
कोई जी सके इसलिए मर जातीं
सेवा करतीं फिर भी मालिक होतीं
अगर तुम सिख होतीं
अच्छा हुआ कि तुम सिर्फ़ ये सब नहीं हो
मज़हबी हो लेकिन कोई मज़हब नहीं हो
कभी हिन्दू की ख़त्म ना होने वाली कहानी हो
कभी मुसलमाँ की अपनों के लिए क़ुरबानी हो
कभी क्रिस्चियन की जानी बूझी बेपरवाही हो
कभी सिखों के जीवन-जाम की सुराही हो
कभी वो बौद्ध जिसे किसी की तलब नहीं हो
आखिर बस इसां हो, गुटबाजी का सबब नहीं हो
अच्छा हुआ कि तुम सिर्फ़ ये सब नहीं हो
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