जला दो
आज सब जला दो
दुनियादारी का कचरा
जिसमें सड़ी-गली परम्पराओं के
कीड़े पलते हैं
जो इंसानियत के करिश्मे को
समाज की चटनी
और कर्तव्य का तड़का लगाके निगलते हैं
कभी हाथ जोड़ के
कभी फैला के
कभी हिम्मत तोड़ के
कभी हिमाकत दिखा के
कभी दण्डवत होके
कभी झुक के उठ के खाते धोखे
इस गंदगी में लोटने वाले
दुश्मन हैं अपने ही बच्चों के
कौन ज़्यादा गंदगी में पड़ा है
किसका ख़्याली पुलाव ज़्यादा सड़ा है
बस यही बहस बची है अब
ये भी कर लो
अपने-अपने पाक-पवित्र कूड़ेदान में
महफूज़ रहने का दम भर लो
मूर्ति उठा के नाच लो
या ताजिये चौराहे पे धर लो
ना ज़िन्दगी में कुछ किया है
ना करने की औकात है
तो क्या? करने को देशभक्ति की बात है
और झाड़ने को परम्परा है, मज़हब है, जात है
कभी धर्म खतरे में है
कभी धर्मनिरपेक्षता खतरे में है
काश कभी ये सोचा होता
कि तुम भी कचरे में हो
और वो भी कचरे में हैं
इस कचरे में इंक़लाब का घी डालो
सच्चाई की चिंगारी दिखाओ
और ज़मीर की हवा दो
आज सब जला दो
Thursday, March 21, 2019
बुरा ना मानो होली है
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