Friday, June 05, 2020
कुत्ते की मौत
Sunday, March 31, 2019
Acrostics for Acrophobics
Rambunctious ramblings resound
Ostracised for being pleasure-bound
Careful with that guitar, Eugene
Knowledge is not always the same as sound
'Neath the surface lies the dirt
Run into all sorts in this line of work
Ostentatious, outcast, or ordinary
Lazy, lewd, or just plain hurt
Let it play, I say
Thursday, March 21, 2019
बुरा ना मानो होली है
जला दो
आज सब जला दो
दुनियादारी का कचरा
जिसमें सड़ी-गली परम्पराओं के
कीड़े पलते हैं
जो इंसानियत के करिश्मे को
समाज की चटनी
और कर्तव्य का तड़का लगाके निगलते हैं
कभी हाथ जोड़ के
कभी फैला के
कभी हिम्मत तोड़ के
कभी हिमाकत दिखा के
कभी दण्डवत होके
कभी झुक के उठ के खाते धोखे
इस गंदगी में लोटने वाले
दुश्मन हैं अपने ही बच्चों के
कौन ज़्यादा गंदगी में पड़ा है
किसका ख़्याली पुलाव ज़्यादा सड़ा है
बस यही बहस बची है अब
ये भी कर लो
अपने-अपने पाक-पवित्र कूड़ेदान में
महफूज़ रहने का दम भर लो
मूर्ति उठा के नाच लो
या ताजिये चौराहे पे धर लो
ना ज़िन्दगी में कुछ किया है
ना करने की औकात है
तो क्या? करने को देशभक्ति की बात है
और झाड़ने को परम्परा है, मज़हब है, जात है
कभी धर्म खतरे में है
कभी धर्मनिरपेक्षता खतरे में है
काश कभी ये सोचा होता
कि तुम भी कचरे में हो
और वो भी कचरे में हैं
इस कचरे में इंक़लाब का घी डालो
सच्चाई की चिंगारी दिखाओ
और ज़मीर की हवा दो
आज सब जला दो
Tuesday, February 14, 2017
तुम्हें क्या मालूम
तुमसे कितना है हमें प्यार तुम्हें क्या मालूम
इस ज़िन्दगी के सरोकार तुम्हें क्या मालूम
दिल में जो भी है वो चिल्ला दो मगर धीमे से
खत भी हो जाते हैं अख़बार तुम्हें क्या मालूम
आज जो कल की कोई बात करी तो फिर से
आज हो कल का गुनहगार तुम्हें क्या मालूम
इक कहानी तुम्हारी आँखों में पढ़ लेता हूँ
जग से होता हूँ जब बेज़ार तुम्हें क्या मालूम
इक हंसी नर्म से होठों पे तैर जाए बस
पलट जाए मेरी सरकार तुम्हें क्या मालूम
तमन्नाओं की दुकानें तो बहुत हैं लेकिन
लम्हों का ना कोई बाज़ार तुम्हें क्या मालूम
तुमसे कितना है हमें प्यार तुम्हें क्या मालूम
इस ज़िन्दगी के सरोकार तुम्हें क्या मालूम
Saturday, June 25, 2016
थोड़ी और ग़ालिब-गलौज
बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल है दुनिया मेरे आगे
होता है शब-ओ-रोज़ तमाशा मेरे आगे
I see the world as a kids' playground
I watch this daily spectacle of light and sound
एक खेल है औरंग-ए-सुलेमां मेरे नज़दीक
एक बात है ऐजाज़-ए-मसीहा मेरे आगे
A game of thrones plays out near me
Before me, messianic prophecies abound
होता है निहां गर्द में सहरा मेरे होते
घिसता है जबीं ख़ाक़ पे दरिया मेरे आगे
Even as I watch, deserts turn to dust
And rivers grinds their heads on the ground
मत पूछ कि क्या हाल है मेरा तेरे पीछे
तू देख कि क्या रंग है तेरा मेरे आगे
Don't ask me how I'm doing without you
Just notice how you blush when I'm around
ईमां मुझे रोके है तो खींचे है मुझे क़ुफ़्र
काबा मेरे पीछे है कलीसा मेरे आगे
Morals hold me back as blasphemy pulls me in
I left the mosque behind but hear the church bell's sound
आशिक़ हूं पे माशूक़_फ़रेबी है मेरा काम
मजनूं को बुरा कहती है लैला मेरे आगे
I'm a romantic who betrays all romantic souls
Juliet bitches about Romeo when I'm around
गो हाथ को जुम्बिश नहीं आंखों में तो दम है
रहने दो अभी साग़र-ओ-मीना मेरे आगे
My hands may be devoid of strength but sight is still perfect
Let me see this sea of liquor, even if I can't get drowned
Saturday, May 28, 2016
शराब-ओ-ख़राब/Liquor and other vices
जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें
If I lose you, I may still find you in my dreams
ढूँढ उजड़े हुए लोगों में वफ़ा के मोती
ये ख़ज़ाने तुझे मुम्किन है ख़राबों में मिलें
Try digging broken hearts to look for gems of faith
Treasures like these may be hidden in painful screams
नश्शा बढ़ता है शराबें जो शराबों में मिलें
Combine the wordly sorrows with those of the heart
Friday, November 20, 2015
मज़हबी
अगर तुम हिन्दू होतीं
रोज़ नए रूप में रूबरू होतीं
हर दिन मेरी किसी नयी बात पर निसार होतीं
मेरे बारे में रोज़ नयी कहानियां गढ़तीं
और रोज़ मेरी पुरानी कहानियों से लड़तीं
मुझसे जी भर के मिलतीं
पर मुझको रत्ती भर भी ना मिलतीं
कहीं ना होकर भी हर सू होतीं
अगर तुम हिन्दू होतीं
अगर तुम मुसलमाँ होतीं
कभी पूरा ना होने वाला अरमां होतीं
हर रोज़ पहली सी मोहब्बत करतीं
खुद से ज़्यादा मुझपे यकीन करतीं
मेरी गलतियों को छुपा लेतीं
मेरे एक वादे पर ज़िन्दगी बिता लेतीं
मेरी किसी बात को ना टाल पातीं
मुझको मुसीबत में संभाल पातीं
मेरी हर परेशानी से परेशां होतीं
अगर तुम मुसलमाँ होतीं
अगर तुम क्रिस्चियन होतीं
कभी बुढ़ापा कभी बांकपन होतीं
हफ्ते भर की दुनियादारी के बाद
मुझे sunday के सुकूं की तरह मिलतीं
जब मिलतीं तो गुनहगार सी
जब बिछड़तीं तो तलबगार सी
बेज़ुबां बच्चे की ज़ुबान जैसी
बेमतलब बेपरवाह बे-सुख़न होतीं
अगर तुम क्रिस्चियन होतीं
अगर तुम बौद्ध होतीं
गीली मिट्टी सी तुम्हारी सौंध होती
अपने जज़्बातों से ही घबराई सी
छुपा लेतीं खुद को मुझे भुलाने के लिए
घूमतीं गली गली सबको समझाने के लिए
कि मोहब्बत में दर्द मिलता है
सुकूं बस फ़र्द-फ़र्द मिलता है
मैं अँधेरे में तुम्हारी आहटें तलाशता और
पूरी दुनिया तुमसे चकाचौंध होती
अगर तुम बौद्ध होती
अगर तुम सिख होतीं
लटके हुए चेहरों पर कालिख होतीं
कहानियों से खींचकर मुझको तुम
हक़ीक़त में धम से ला पटक देतीं
मेरी मोहब्बत सीधे बोतल से गटक लेतीं
हर पल में और वक़्त भर जातीं
कोई जी सके इसलिए मर जातीं
सेवा करतीं फिर भी मालिक होतीं
अगर तुम सिख होतीं
अच्छा हुआ कि तुम सिर्फ़ ये सब नहीं हो
मज़हबी हो लेकिन कोई मज़हब नहीं हो
कभी हिन्दू की ख़त्म ना होने वाली कहानी हो
कभी मुसलमाँ की अपनों के लिए क़ुरबानी हो
कभी क्रिस्चियन की जानी बूझी बेपरवाही हो
कभी सिखों के जीवन-जाम की सुराही हो
कभी वो बौद्ध जिसे किसी की तलब नहीं हो
आखिर बस इसां हो, गुटबाजी का सबब नहीं हो
अच्छा हुआ कि तुम सिर्फ़ ये सब नहीं हो