नज़र आये कभी यूँ ही कहीं ख़्वाबों का नामाबर
नही दो ध्यान ये बेकार की माज़ीपरस्ती है
कभी मिल जाए फुर्सत दो कदम पीछे पलटने की
तो रखो याद यहाँ मौत भी फुर्सत से सस्ती है
Saturday, March 14, 2009
Friday, March 13, 2009
नदी पेड़ पहाड़ पत्थर - 71, 72, 73, 74
कभी सोते में जागे तो कभी जगते में सो लिए
इस ख्वाबीदा ज़िन्दगी की किस्मत में अब ख्वाब नही
पलकों से फूटता ये नूर का दरिया भी है धोखा
उफक पर डूब जायेंगे मगर हम आफताब नही
For those who are confused, the title is my favourite sher of all time. And just in case, Sudhanshu drops by with a "jitni urdu aati thi ek baar mein....", here's the disclaimer too.
Disclaimer
मौसिकी का जूनून तो था ही, अब शायरी में भी दखल रखते हैं
महफिल में कहीं रुसवा न होना पड़े, बगल में हमेशा "Best of Ghalib" की नक़ल रखते हैं
इस ख्वाबीदा ज़िन्दगी की किस्मत में अब ख्वाब नही
पलकों से फूटता ये नूर का दरिया भी है धोखा
उफक पर डूब जायेंगे मगर हम आफताब नही
For those who are confused, the title is my favourite sher of all time. And just in case, Sudhanshu drops by with a "jitni urdu aati thi ek baar mein....", here's the disclaimer too.
Disclaimer
मौसिकी का जूनून तो था ही, अब शायरी में भी दखल रखते हैं
महफिल में कहीं रुसवा न होना पड़े, बगल में हमेशा "Best of Ghalib" की नक़ल रखते हैं
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