कभी सोते में जागे तो कभी जगते में सो लिए
इस ख्वाबीदा ज़िन्दगी की किस्मत में अब ख्वाब नही
पलकों से फूटता ये नूर का दरिया भी है धोखा
उफक पर डूब जायेंगे मगर हम आफताब नही
For those who are confused, the title is my favourite sher of all time. And just in case, Sudhanshu drops by with a "jitni urdu aati thi ek baar mein....", here's the disclaimer too.
Disclaimer
मौसिकी का जूनून तो था ही, अब शायरी में भी दखल रखते हैं
महफिल में कहीं रुसवा न होना पड़े, बगल में हमेशा "Best of Ghalib" की नक़ल रखते हैं
1 comment:
Shayar tho aap badiya likhte hain lekin kuch kam samajhne waalon ke liye bhavarth bhi likh dete tho badiya hota! :)
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