a reason to rhyme about revelations in real-time
Saturday, March 14, 2009
सबब-ऐ-उदासी - ८३, ८४, ८५, ८६
नज़र आये कभी यूँ ही कहीं ख़्वाबों का नामाबर
नही दो ध्यान ये
बेकार
की
माज़ी
परस्ती है
कभी मिल जाए फुर्सत दो कदम पीछे पलटने की
तो रखो याद यहाँ मौत भी फुर्सत से सस्ती है
1 comment:
Chatur_Baby
said...
Waiting for the next blog!
9:46 AM
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