घर के जो भए चिराग,
निकल पड़े हैं अग्निशमन को,
गांड में लेकर आग,
गांड में लेकर आग, जो पादें होए धमाका
खुद की फटे न फटे तेरा तो रब ही राखा
लपट लपट ललचाये जो बन्धु,
नहीं किसी की खैर
भाग सके तो भाग ले गांडू,
सर पे रख के पैर
सर पे रख ले पैर वरना खायेगा मुंह की
और चाटन पड़ेगी वो चुइंगम जो हमने थूकी
रपट रपट रसलीन हैं बन्धु,
हमसा न कोई लंड
झंड झमेलों में पड़ के भी,
निकला नहीं घमंड
निकला नहीं घमंड, ये कैसा अजब अजूबा,
साहिल उसे मुबारक जो न कभी हो डूबा
1 comment:
haha..
pehli aur akhri verse ke last chhands bemisaal hain bhai. chaapis!
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