भूल गया हूँ खुद को लेकिन दुनिया सारी याद है
दुनियादारी के नाटक के रटे सभी संवाद हैं
खोया रहता एक पल में पर पल घटते ही जाते हैं
घड़ियाँ नापें खुद को, लेकिन वक़्त नापती याद है
सबसे बड़ा मसीहा वो जो खुद को ठीक से पहचाने
अपने ही दोज़ख से बचना, बस एक यही जिहाद है
बेचैनी से क्या बचना, ये जिंदा रहने की जिद है
संतोष अगर है प्रीत की बरखा, तो बेचैनी खाद है
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