कब मैंने ये सोचा था भला
कहीं कोई तुझसी भी होगी
इस समझदारों की दुनिया में
इक बावरिया मुझसी भी होगी
मैं बैरागी बनता था फिरता
मन के दरिया में खेता नैया
इस भोले-भगत को तूने darling
दो दिन में बना दिया कन्हैया
समझ नहीं आता
तू क्या है
नासमझ भी होना
पर क्या बुरा है?
तू अक्स है मेरा मुझमें ही
मैं बसता अब दो जिस्मों में
Expert हो गया मैं भी अब
पागलपन की सब किस्मों में
दिन में सूरज से जलता हूँ
और रात में तेरी यादों से
जब कहती तू पास आने को
लड़ता हूँ अपने इरादों से
अब किससे पूछूं
की तू क्या है
मिलकर भी ना मिलती
ऐसी सज़ा है
क्या किया है तूने मेरा हाल
खुद को भी दिया ये दर्द-ए-दिल
जी करे तुझमें गोते खाऊं
जब कहती है तू "आके मिल"
इस आग का तू ही fuel और
तू ही पानी की धारा है
तेरी बाहों में मरना भी
जीने से ज्यादा गवारा है
अब तू ही मुझे बता
की तू क्या है
दुआ का असर है या फिर
खुद ही दुआ है?
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