Thursday, July 28, 2011

प्रयाग-प्रेम

वकीलों से घिरे पड़े
जहाँ जज भरे गिरे-पड़े
दो ठो petition हमसे भी धोखे में ही लगवा दी हैं
क्यूंकि हम इलाहाबादी हैं

कौनो भी कैसा चूतिया
विद्या का जिसने वध किया
University से Law पढ़ाने की ही बस सलाह दी है
क्यूंकि हम...

गंगा का पानी पीते हैं
जमुना में लेकिन जीते हैं
हनुमान को भी हमने लत आराम की पड़वा दी है
क्यूंकि हम...

सोये पड़े इस शहर में
चाहे रात या दोपहर में
चुनिन्दा चिड़ीमारों को Civil Lines ने पनाह दी है
क्यूंकि हम...

पुरबिया बयार भारी है
फितरत से तो बिहारी हैं
तबियत से अलबत्ता लखनऊ-कानपूर इत्यादि हैं
क्यूंकि हम...

कभी विद्या का मकान था
आध्यात्मिक-type स्थान था
अब आधे ससुरे संघी, बाकी समाजवादी हैं
क्यूंकि हम...

जोधा को प्रिय प्रयाग था
अकबर कहाँ तक भागता
एक किले की आड़ में घरेलू समस्या सुलझा दी है
क्यूंकि 'मैडम' इलाहाबादी हैं

इतिहास की जो छाप थी
अंग्रेजों ने सब ढांप दी
अंग्रेजियत की हमने भी मय्यत जो न सजा दी है
क्यूंकि हम...

उस भवन में भी क्या आनंद
संग्राम के हैं टुकड़े चंद
अब गाँधी होने का मतलब केवल पहनना खादी है
क्यूंकि हम...

अब और क्या बतलायें बस
दो, चार, छः, आठ, दस
इस पिछली line की तरह हम लफ़्ज़ों की बर्बादी हैं
क्यूंकि हम...

~आराम के आदी, 'फुर्सत' इलाहाबादी

Sunday, July 10, 2011

An underpinning of the art of winning

बखत बखत की बात है बन्धु,
घर के जो भए चिराग,
निकल पड़े हैं अग्निशमन को,
गांड में लेकर आग,
गांड में लेकर आग, जो पादें होए धमाका
खुद की फटे न फटे तेरा तो रब ही राखा

लपट लपट ललचाये जो बन्धु,
नहीं किसी की खैर
भाग सके तो भाग ले गांडू,
सर पे रख के पैर
सर पे रख ले पैर वरना खायेगा मुंह की
और चाटन पड़ेगी वो चुइंगम जो हमने थूकी

रपट रपट रसलीन हैं बन्धु,
हमसा न कोई लंड
झंड झमेलों में पड़ के भी,
निकला नहीं घमंड
निकला नहीं घमंड, ये कैसा अजब अजूबा,
साहिल उसे मुबारक जो न कभी हो डूबा