Thursday, December 12, 2013

शिकायतें

आजकल शिकायतें बहुत हैं

दुनिया से और दुनियावालों से
क़ानून से और उसके रखवालों से
पैसे की पूजा करने वालों से
पूजा में पैसे धरने वालों से

सड़क पर बढती जा रही cars से
खुद की car ना होने के विचार से
देश में फैले भ्रष्टाचार से
अपनी भ्रष्ट हरकतों के प्रचार से

Back to back चुनाव से
तंत्र में लोक के अभाव से
जातियों के बीच खिंचाव से
अपनी जाति के बचाव से

'Gay' सुनते ही नाक-भौं सिकोड़ने से
हर ठीकरा court के सर फोड़ने से
सरकार के वादे तोड़ने से
सब सरकार भरोसे छोड़ने से

खबरों के avalanche से
अरनब के पिछवाड़े की आंच से
पड़ोसी की खिड़की के काले कांच से
अपनी privacy पर ज़रा-सी आंच से

अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक मंदी से
खाली बैठने पर पाबंदी से
अपराधियों की अक्लमंदी से
ज़बरदस्ती की तुकबंदी से

अपनी हर गलती छुपाने को हुकूमत-ए-विलायत है
इसीलिए इस मुल्क को अपने आप से शिकायत है

Wednesday, July 10, 2013

एक था राजा

कोई कहता था उसे शूरवीर
कोई कहता लम्पट
आधी दुनिया को रौंद के वो
पहुंचा सिन्धु के तट

रणभूमि था मंदिर उसका
वो जंग का था फ़रियादी
रण में ही मनन किया उसने
रण में ही ढूंढी समाधि

राजा नहीं, वो था सेनानी
गद्दी से कोसों दूर
ना सुख की, ना सत्ता की भूख
सन्यासी, किन्तु क्रूर

सिन्धु के तट पर तब उसने
देखा एक अजब अजूबा
तन पानी में, और मन तो खुद
मन के दरिया में डूबा

पूछा राजा, "हे सिन्धुवासी
क्या है तेरा नाम?
यूं भरी दुपहरी स्नान करे
क्या नहीं तुझे कोई काम?"

वो मुस्काया, बोला "राजन
मैं हूँ बिलकुल बेकार
तू आया पार कर सौ दरिये
मैं गया ना सिन्धु पार"

हैरान हो गया वीर पुरुष
"कैसे तू पाया जान?
कि दूर देस से मैं आया
जिसे कहते हैं यूनान"

पागल-सा हंसा अचानक वो
"नहीं ये कोई चमत्कार
थक गया है तू चलते-चलते
अब लगता है बीमार"

"बकवास!" कह गरज उठा योद्धा
"मैं थकता नहीं कभी
तेरी धरती को जीत
बना लूँगा तुझे दास अभी"

"मैं हूँ इस धरती का लेकिन
मेरी कोई धरती नहीं
जो जीतना है तू जीत के आ
मैं मिलूँगा तुझे यहीं"

योद्धा बोला, "पहले ये बूझ
कैसे है तू बेकार?
अपने जीवन से तुझे नहीं
क्या तनिक भी सरोकार?

ये यौवन तो है क्षणभंगुर
पल में कट जावेगा
गर कुछ ना किया तो मरते दम
तू बहुत पछ्तावेगा

मेरे भी देश में हैं ज्ञानी
बतलाते मृत्यु-रहस्य
कहते कि स्वर्ग पहुँचने को
दो सिक्के लगते बस

मैं तो अब इतना जीत चुका
कि स्वर्ग भी लूँगा खरीद
और तेरे हाथ बस आएगी
मेरे घोड़े की लीद"

ये सुन के और हंसा साधू
"बातें तेरी बालक-सी
ना सृष्टि की है समझ तुझे
ना सृष्टि के चालक की

तू मौत भी सिक्कों में तोले
स्वर्ग जाएगा रिश्वत दे के
अरे मौत प्रेयसी है वेश्या नहीं
जो जेब के भार को देखे

पीर मरे, पैगम्बर मरे हैं
मर गए जिन्दा जोगी
राजा मरे, प्रजा मरी है
मर गए वैद और रोगी

पर मौत भी कोई अंत नहीं
सब लौट के फिर आयेंगे
इस जन्म में जो भी कर्म किये
उनका ऋण चुकायेंगे

जब लौट के यहीं पे आना है
तो फिर जल्दी काहे की?
तुझ से तो कहीं बेहतर है
ज़िन्दगी एक जुलाहे की

तू सिन्धु पार तो कर लेगा
पर दूर ना जा पायेगा
तेरा काल तुझे जल्दी ही
वापस खींच लाएगा

तूने युद्ध में जितने भी मारे
सब वीरगति को पाए
तेरी मौत होगी इतनी मामूली
कि बताने में शर्म आये"

इससे ज़्यादा सुन सका नहीं
आगबबूला हो गया वीर
झटके में शीश ने छोड़ दिया
साधू का तड़पता शरीर

सिन्धु तो पार कर गया वो
पर सेना हो गयी पस्त
और मगध का वर्णन सुनते ही
लग गए सभी को दस्त

फिर झेलम से ही लौट चला
शूरवीरों का वो दस्ता
और मरा वहीँ जाकर राजा
जिस जगह से था वाबस्ता

पर दोनों लौट के फिर आये
किस्मत का अजब है झोल
राजा अब के बन गया फ़कीर
साधू बन गया मंगोल

कौन है राजा? कौन फ़कीर?
कभी सिकंदर, कभी कबीर

कौन प्रसिद्ध है? कौन अनजान?
कभी साधू, कभी चंगेज़ खान

Sunday, February 17, 2013

सुना है...

सुना है कोई कुछ बोला है
किसी ने आहत भावनाओं को लफ़्ज़ों में तोला है
क्या बोला है ये तो पता नहीं
पर इसमें हमारी खता नहीं
कहने-सुनने का जाता रहा वक़्त
जंग वही है, हथियार नए हैं फ़क़्त
हज़ारों साल पुराने ज़ख्मों को
किसी ने फिर से टटोला है
सुना है

सुना है कुछ नीची जातें
करने लगी हैं ऊंची करामातें
लानत है! शर्म है! धिक्कार है!
लूट-खसोट तो ऊंची जातों का जन्मसिद्ध अधिकार है
खैर ये विवाद भी बढ़िया है
कि किसने देश को कितना लूट लिया है
कौन बन चुका है पुराना नासूर
और कौन नया-नया फफोला है
सुना है

सुना है कोई नौटंकी वाला
film बनाने चला था साला
ज़रूर उसके दिल में शैतान है
क्यूंकि film की setting अफ़ग़ानिस्तान है!
देखें तो पता चले शायद
क्या है इस काफिर की कवायद
मगर देखें तो देखें कैसे?
हम ही ने तो release के खिलाफ मोर्चा खोला है
सुना है