Thursday, February 13, 2014

समस्या

"क्या समस्या है?"

"साब वो फलाना प्रसाद
करता है दंगा-फसाद
सरकारी ज़मीन
खसरा नं. दो सौ तीन
पर बांधता है मवेशी
करवाइए उसकी फ़ौरन पेशी
ये सभी अतिक्रमियों के लिए सबक होगा
वरना बाधित सरकार का हक़ होगा
आपकी सारी नक्शेबाज़ी बेकार होगी
ये सरकार के साथ-साथ हम सबकी हार होगी"

"अच्छा, पर तुम्हारी क्या समस्या है?"

"साब अभी तो बताया"

"हाँ पर मुझे समझ नहीं आया
ज़मीन तो है सरकार की
फिर तुम क्यूँ बातें करते हो जीत-हार की?"

"कमाल करते हो साब
कहाँ गया आपका सरकारी रुबाब?
वो अतिक्रमी दुष्ट है, दुराचारी है
और ज़मीन सरकार की सही
लेकिन सरकार तो हमारी है!"

"बोला तो काफी बढ़िया है
लेकिन मैं अब भी नहीं समझा तुम्हारी समस्या क्या है?"

"समस्या?
मेरी समस्या है आपका पटवारी
और उसके जैसे सभी नालायक नाकारा कर्मचारी
जो तनख्वाह लेते हैं सरकार की
और राह लेते हैं भ्रष्टाचार की
मेरी समस्या है आप जैसे अफसर
जो कभी छोड़ते नहीं हैं दफ्तर
इस आरामकुर्सी पर बैठे
बिना किसी बात के ऐंठे
समाज सेवा का करते हैं नाटक
पर आम आदमी के लिए बंद हैं आपके फाटक
ज़मीन से दूर हवा में किले बनाते हैं
ख्याली पुलाव पका कर जनता को खिलाते हैं
मेरी समस्या है ये सड़ा हुआ सिस्टम
जिसमें चिंदी चोर चमगादड़ ज्यादा हैं
इंसान बहुत कम
हमारे फायदे के लिए बनाया गया
हमारा ही फायदा उठाता है
65 सालों से हमको चूतिया बनाता है
यहाँ अपना ही हक़ मांगने के लिए
करनी पड़ती है सालों तक तपस्या
यही है बड़े साब मेरी सबसे बड़ी समस्या!"

"तुमने मेरी आँखें खोल दीं
जो हर आम आदमी के दिल में उबल रही है
वो बात बोल दी
अब कोई कुछ भी कहे
नौकरी रहे ना रहे
मैं साथ हूँ तुम्हारे इस संघर्ष में
हमारी भी जीत होगी इस आम आदमी के वर्ष में
सही में सड़ चुका है ये सिस्टम सरकारी
मगर मेरे भाई, अब तो बता दो
वाकई में समस्या क्या है तुम्हारी?"

"अरे साब, आप अब तक नहीं समझे?
इतना ज्ञान मैं दोबारा ना दूंगा
जब वो अपने मवेशी खोलेगा
तभी तो मैं अपने बांधूंगा"