Sunday, December 25, 2011

मुनिया की दुनिया

फुर्र-फुर्र उड़े फुर्सत की मुनिया
बस देखती रह जाएगी दुनिया

मुनिया जा पहुंचेगी अमरीका 
जहाँ लाखों में ना कोई किसी का 
बस सस्ता तेल मिले तो पी लो
बिन खतरे भी डर-डर के जी लो
और भाड़ में जाए बाकी दुनिया 
फुर्र-फुर्र.....

मुनिया जा पहुंचेगी इंग्लैंड 
जहाँ पूँजीवाद का बज गया बैंड
अब उपनिवेश के कहाँ ज़माने 
बस human rights के दे-दे ताने
कर लो कंट्रोल में अपने लिब्या 
फुर्र-फुर्र....

मुनिया जा पहुंची अब Mid-East
जहाँ जन्मे मुहम्मद, यीशु ख्रीस्त 
समझे न यहाँ कोई किसी की चाल
पीली-सी रेत का रंग है लाल
हज़रत की सीख का बिगड़ा हुलिया
फुर्र-फुर्र....

मुनिया जा पहुंचेगी जब रूस
वहाँ उड़ने की भी लगेगी घूस
सर्दी ला-महदूद मांगे सब्र
Napoleon की भी खुद गयी कब्र
पर गरमागरम हैं यहाँ की कुडियां
फुर्र-फुर्र....


मुनिया जा पहुंचेगी अफ्रीका 
जहाँ दर्द मिलेगा उसको free का
है घाव यहाँ पर सिलना मुश्किल
पर नाउम्मीद क्या होना ऐ दिल
आएगा वक़्त यहाँ भी बढ़िया
फुर्र-फुर्र....

मुनिया जा पहुंचेगी जब चीन
सोचेगी इंसां हैं या मशीन
दुनिया का माल बनाते हैं
और धर्म को धता बताते हैं
डूबी है यहीं फिरंग की लुटिया
फुर्र-फुर्र....

मुनिया जा पहुंचेगी ईरान
तारीख करे जिसका बखान
यूनान पुराना था दुश्मन
मग़रिब से आज भी है अनबन
है आर्य-पुरुष का मुल्क़ ये अरिया
फुर्र-फुर्र...


मुनिया जा पहुंची पाकिस्तान 
जहाँ मुफ्त मिली उसे झूठी शान
दिखने-सुनने में हम-से हैं
अब तक तक़सीम के ग़म से हैं 
मौसिक़ी के पर उस्ताद हैं भैया
फुर्र-फुर्र....


मुनिया लौटी अब हिन्दोस्ताँ
बकवास बकर और बकरे याँ 
कई अपने मन की करते हैं
कई भूख से आज भी मरते हैं
दुखियारे भी यहाँ बांटे खुशियाँ 
फुर्र-फुर्र....

Wednesday, December 07, 2011

और बताओ क्या चल रहा है?


दस्सा है परेशां
टपका है आसमां
अब शायरी का कीड़ा भी गांड में पल रहा है
और बताओ क्या चल रहा है?

बारातियों की फ़ौज
मस्ती, मज़ा, और मौज
नाचें यूं hodge-podge मानो बदन जल रहा है
और बताओ...

मौसम का सुनिए हाल
धड़कन की सुनिए ताल 
धरती की मस्त चाल पे बादल फिसल रहा है
और बताओ...

क्या हुआ रे सिबल?
माथे पे क्यूँ हैं बल?
क्या चाटने में दिग्गीमल आगे निकल रहा है?
और बताओ...


ख़ामोशी के अल्फ़ाज़
अनसुनी एक आवाज़
हर छिपे हुए राज़ में एक सच उबल रहा है 
और बताओ...

ना शमा की शरम
ना पतंगे का श्रम 
बचता है बस वो मोम जो हर पल पिघल रहा है
और बताओ...

थे बेफ़िक्र बेपरवाह
क्या असर, कैसी आह
ग़ालिब पढ़ा, हर चाह पे अब दम निकल रहा है 
और बताओ....