Tuesday, February 14, 2017

तुम्हें क्या मालूम

तुमसे कितना है हमें प्यार तुम्हें क्या मालूम
इस ज़िन्दगी के सरोकार तुम्हें क्या मालूम

दिल में जो भी है वो चिल्ला दो मगर धीमे से
खत भी हो जाते हैं अख़बार तुम्हें क्या मालूम

आज जो कल की कोई बात करी तो फिर से
आज हो कल का गुनहगार तुम्हें क्या मालूम

इक कहानी तुम्हारी आँखों में पढ़ लेता हूँ
जग से होता हूँ जब बेज़ार तुम्हें क्या मालूम

इक हंसी नर्म से होठों पे तैर जाए बस
पलट जाए मेरी सरकार तुम्हें क्या मालूम

तमन्नाओं की दुकानें तो बहुत हैं लेकिन
लम्हों का ना कोई बाज़ार तुम्हें क्या मालूम

तुमसे कितना है हमें प्यार तुम्हें क्या मालूम
इस ज़िन्दगी के सरोकार तुम्हें क्या मालूम

1 comment:

lost sanyasi said...

क्या खूब लिखा है तुमने तुम्हें क्या मालूम 😆