Monday, July 19, 2010

सरकारी बस

(कवि: प्रदीप चौबे)
सरकारी बस थी
सरकती ना थी, बस थी
हमने conductor से कहा,
"दद्दा, मन में धूम्रपान की इच्छा जगी है,
आपकी कसम, बड़े ज़ोरों की तलब लगी है
एक-आध पी लूं?"
वो बोला, "फूट गयी है क्या? दीखता नहीं?
सामने साफ़-साफ़ लिखा है - धूम्रपान करना मना है"
हमने कहा, "मालूम है, पर एक बात बताइए दद्दा,
कानून क्या अकेले हमारे लिए ही बना है?
वो जो सबसे आगे बैठा, सुट्टे पे सुट्टे ले रहा है
गाडी से double धुआं तो वही दे रहा है,
उसे क्यूँ नहीं रोकते?"
Conductor बोला, "उसने मुझसे पूछा कहाँ था?
पूछता तो उसे भी रोकता,
आप नहीं पूछते तो आपको भी नहीं टोकता"
हमने कहा, "लेकिन ये तो बेईमानी है,
सरासर अन्याय है, कानून का मजाक है,
हमारे साथ पक्षपात है, यात्री-यात्री में भेदभाव् है,
जनता के साथ षड़यंत्र है"
वो बोला, "इतनी रेजगारी क्यूँ खर्च करते हो?
एक ही शब्द में बोलो लोकतंत्र है
लोकतंत्र यानी हमारी democracy,
जिसमें हर नागरिक जैसा चाहे करने को स्वतंत्र है
पीने वाला बीडी पी सकता है,
मैं उसे रोक सकता हूँ,
आप मुझसे धूम्रपान की आज्ञा मांग सकते हैं,
मैं आपको डाँट सकता हूँ,
आप मेरी complaint कर सकते हैं,
ऊपर वाला मेरे खिलाफ action ले सकता है,
Union मुझे बचा सकती है,
आपकी complaint रद्दी की टोकरी में जा सकती है,
आप court की शरण में जा सकते हैं,
जहाँ वकील cigarette तो क्या, आपकी चिता भी सुलगा सकते हैं
बस बाबूजी यही हमारा मंत्र है,
और आज़ादी का मूलमंत्र है,
यहाँ कोई भी फटीचर कानून का मजाक उड़ाने को स्वतंत्र है,
इसी का पहला और आखरी नाम लोकतंत्र है
लेकिन बाबूजी, बहस करने से क्या फायदा,
भाड़ में जाने दो कानून और कायदा,
ये सब बातें व्यवहार में निरर्थक हैं,
एकदम country हैं,
इस समय हम मामूली बस conductor नहीं,
इस सरकारी डब्बे के मुख्यमंत्री हैं
हमसे हाथ मिलाइए,
तलब ज्यादा लगी हो तो डिब्बी निकालिए
और एक क्या, २ cigarette सुलगाइए,
एक आप पीजिये, दूसरी हमें पिलाइए"

3 comments:

Tiniponders said...

see now that's what the priests of Alexander's army are good at....writing haasya kavita!!!

Unkool said...

hehe yeah, I guess when your stupid king is hell-bent on conquering the earth, a sense of humour is the only way to remain sane!

Dev said...

Awesome work ... Kudos ...