Saturday, May 14, 2011

Gravitas

पैरों की एक समस्या है, कैसे अब इसका हल निकले
उस ज़मीं से ही बंध जाते हैं, दो पल को जिसपर चल निकले

अब पड़े यहाँ, अब जुड़े वहां, बन जाता है हर कदम मुकाम
पर चलते चलते रुक जाना भी आखिर है चलने के नाम

बस चलना ही तो सबब नहीं, हर पथ का रंग अलग सा है
गर गौर करो तो हर इक के चलने का ढंग अलग सा है

कुछ और कदमो की आहट भी अपने कदमो की साथी है
जो साथ चले उसकी मंजिल भी अपनी सी बन जाती है

जब साथ चले तो बात चले जैसे चाहे हालात चले
हाथों में रहे हाथ तो फिर फिसलन की क्या औकात भले

यूं फिसल फिसल चलना सीखे, फिर चलते चलते फिसल लिए
मौके पे आदत बदली या आदत के मौके बदल लिए

पर एक खिंचाव अजब सा है, चलने की जो देता हिम्मत
एक अनबोली आवाज़ जिसे कोई दिल कहता, कोई किस्मत

कोई एक राह ही सही नहीं, हर एक राह भी सही नहीं
जिसने जैसी दुनिया देखी, वैसी अब दुनिया रही नहीं

जब पैर ज़मीं पर पड़ते हैं, सर आकाशों में फिरता है
सबसे ऊंचा उड़ने वाला सबसे नीचे तक गिरता है

उड़ने का मज़ा यही है की गिरना तो आखिर पड़ता है
डर डर के उड़ने वालों से भगवान का धंधा चलता है

बस पर पूरे पसार के उड़ना ही जीवन का दर्शन है
जब उड़ पाए तब आकर्षण, जब गिरे गुरुत्वाकर्षण है

No comments: