Tuesday, January 03, 2012

पाक़ ख्याल पाखानों में

जिस्म लटके हुए लाखों बूचड़खानों में
हुस्न वो चीज़ नहीं मिले जो दुकानों में

लचकती शाख से टप-टप टपकते फलों की धुन
नहीं सवाब वैसा फेरी की अज़ानों में

अब्र से आब गिरे तो खुदा की नेमत है
मुफ़्त बहता है पर shower से गुसलखानों में

पेट भरने को काफी है रोटी की दावत
दिल के दौरे को दावत दो दस्तर्ख्वानों में 

जो कहें वो कम है, जो न कहें और भी कम
नबी न सही दखल रखते हैं फरमानों में

शौक़ तो सभी करें, ज़ौक़ पर होता है क़लील
शौक़िया शायर मिलें थोक पागलखानों में

कभी 'फुर्सत' में मिलो दिल्लगी तो बहुत हुई
दिल के लगने की कहानी कहें फिर गानों में

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