Wednesday, February 01, 2012

Chill करो


Chill करो, जो कहे दिल करो
कभी-कभी लफ़्ज़ों की रेलगाड़ी signal तोड़ते हुए
समझ की पटरी से धड़धड़ा कर उतर जाती है
और एहसासों का courier दिल से ज़बान तक
पहुँचाने से पहले कहीं और पहुँच जाती है
यूं तो हर तिनके में तीरथ-सा कुछ महसूस होता है
मगर ना दिखता है ना आवाज़ उसकी आती है

छोड़ो मुल्लों-पंडों के पचड़े, खुदा को खुद में अब शामिल करो
थोड़ा chill करो

आजकल सुनने में आया है ये नादाँ इंसां
बिला-वजह ही इक दूसरे से डरने लगे हैं
अनदेखी क़यामत की अकाल तैयारी में
अभी से अपनी-अपनी तिजोरी भरने लगे हैं
वक़्त से तेज़-रफ़्तार ज़िन्दगी पकड़ने को
डर-डर के जीते-जीते, जीते-जी मरने लगे हैं

कल की फ़िक्र भी कर लेना, पहले आज को तो पूरा हासिल करो
कभी तो chill करो

कभी सोचा है की गर मौत ही ना हो तो फिर
इस तमाशा-ए-ज़िन्दगी की कीमत ही क्या है?
गुल का क्या शोक, इक दिन ख़ाक होगा गुलिस्तां भी
हकीक़त ला-ज़वाल जिसकी वो केवल हवा है
कहानी वही दिल के तारों को झन्नाती है
जिसका अंजाम अनजाने मोड़ पे अचानक छूटता है

अश्कों से नमकीं हंसी की मीठी हर महफ़िल करो
ज़रा-सा chill करो

यादों की बस्ती भी क्या घोर घनी होती है
इसकी राहों में कदमों के निशाँ ढूंढना आसान नहीं
मगर इस फ़िज़ूल के शहर में भटकने की आदत
जिसको ना हो वो कुछ हो ना हो इंसान नहीं
माज़ी के नीले समंदर में गोते खाते-खाते
डूबता जाता है यादों का सब सामान कहीं

गुज़रे कल में फिर से डुबकी लो और milk दुबारा spill करो
बस chill करो

अब देखो कहाँ शुरू किये, कहाँ पहुँच गए
जुस्तजू हो तो सफ़र ख़त्म कहाँ होता है
कल जो कल था वो आज आज है और कल फिर कल
यूं तो हर मोड़ पे मंजिल का गुमां होता है
चलते-चलते कहाँ पहुंचेंगे ये तो पता नहीं
मुसाफ़िर खुद अपना कारवाँ होता है

मंज़िल तो पाते ही गुम जाएगी, यादों में क़ैद रस्ते का thrill करो
थोड़ा chill करो

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