Tuesday, February 14, 2012

तू क्या है

कब मैंने ये सोचा था भला 
कहीं कोई तुझसी भी होगी 
इस समझदारों की दुनिया में
इक बावरिया मुझसी भी होगी

मैं बैरागी बनता था फिरता 
मन के दरिया में खेता नैया 
इस भोले-भगत को तूने darling
दो दिन में बना दिया कन्हैया 

समझ नहीं आता 
तू क्या है
नासमझ भी होना 
पर क्या बुरा है?

तू अक्स है मेरा मुझमें ही 
मैं बसता अब दो जिस्मों में 
Expert हो गया मैं भी अब
पागलपन की सब किस्मों में 

दिन में सूरज से जलता हूँ
और रात में तेरी यादों से
जब कहती तू पास आने को
लड़ता हूँ अपने इरादों से

अब किससे पूछूं 
की तू क्या है
मिलकर भी ना मिलती
ऐसी सज़ा है 

क्या किया है तूने मेरा हाल
खुद को भी दिया ये दर्द-ए-दिल
जी करे तुझमें गोते खाऊं
जब कहती है तू "आके मिल"

इस आग का तू ही fuel और 
तू ही पानी की धारा है
तेरी बाहों में मरना भी
जीने से ज्यादा गवारा है 

अब तू ही मुझे बता
की तू क्या है
दुआ का असर है या फिर
खुद ही दुआ है?

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