Saturday, June 23, 2012

पाप का भागी

हाथ में चाँद के टूटे टुकड़े
जेब में तारों की बारात
भूले सब दुनिया के दुखड़े
याद है तो बस आज की रात

आज की रात क़यामत की है
कल क्या हो ये किसे खबर
आज तो मैंने जुर्रत की है
कल तक सीख ना जाऊं सबर

रात की चादर ओढ़ के मैं
तुझे लोरी एक सुनाऊंगा
तेरे बदन को तोड़ के मैं
तेरी रूह से ही जुड़ जाऊंगा

कहीं किसी को चैन नहीं है
यहाँ-वहां सब फिरते हैं
दिन भर गड्ढा खोदते हैं
और रात को उसी में गिरते हैं

अपना ग़म तो इस आलम  का
एक छोटा-सा हिस्सा है
किसी की ख़ुशी पे पड़ता डाका
किसी के लिए एक किस्सा है

इस गोरखधंधे से बचना
दुनिया बड़ी सयानी है
ढूंढें से मिलता है सच ना
झूठी सारी कहानी है

कहेंगे सब जीवन तो नदी है
बहना है बस उसके साथ
कहेंगे ये तो नयी सदी है
पाप से धो लो अपने हाथ

मगर नदी ही पाप की है ये
कच्चा सबको खा जाती
हर एक नयी सदी भी अपने
साथ नए पापी लाती

मैं भी कहूँगा तुझसे कि मैं
इस सबसे रहता हूँ दूर
अन्धकार के बीच में भी मैं
कायम रखूँगा अपना नूर

पर सच तो ये है मेरी जां
जब जब देखता हूँ तुझको
अच्छे-बुरे और पाप-पुण्य का
होश  नहीं रहता मुझको

मैं भी आज इक पाप करूँगा
गर तू इजाज़त दे देगी
धीरे से चुपचाप मरूँगा
जब तू बाहों में लेगी

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